देवरिया डेस्क, देवरिया जिले के ग्राम सोन्दा में एक नई मिसाल उस समय देखी गई जब जिलाधिकारी दिव्या मित्तल स्वयं खेतों में पहुंचीं। गेहूं की औसत उपज का आकलन करने के लिए क्रॉप कटिंग प्रक्रिया को उनके निर्देशन में अंजाम दिया गया। इस पहल से ना केवल पारदर्शिता बनी रही, बल्कि किसानों को यह भरोसा भी मिला कि उनकी मेहनत का आंकलन सही तरीके से किया जाएगा।
शासन को खेतीबाड़ी की वास्तविक तस्वीर दिखाने के उद्देश्य से यह प्रक्रिया संपन्न हुई। क्रॉप कटिंग प्रक्रिया के अंतर्गत चयनित खेत से फसल काटी जाती है और फिर उसका वजन करके प्रति हेक्टेयर उपज का निर्धारण किया जाता है। इसका उद्देश्य सरकार को यह जानकारी देना होता है कि उस क्षेत्र में कृषि उत्पादन की स्थिति कैसी है।
रैंडम चयन से तय हुआ खेत, निकली सही उपज की तस्वीर
जिलाधिकारी की निगरानी में राजस्व परिषद के दिशा-निर्देशों के अनुसार खेत का चयन रैंडम पद्धति से किया गया। यह प्रक्रिया इसलिए अपनाई जाती है ताकि आंकड़ों में कोई पक्षपात न हो सके। रेंडम तरीके से चुने गए कृषक रामकेवल गुप्ता के खेत में कटाई कार्य कराया गया।
उनके 0.004 हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की कटाई कराई गई, जिसमें कुल 20 किलो 200 ग्राम उपज प्राप्त हुई। यह आंकड़ा दर्शाता है कि स्थानीय स्तर पर किस प्रकार की कृषि उत्पादकता देखने को मिल रही है। इस प्रयास से क्षेत्रीय कृषि नीति निर्धारण में सहायता मिल सकेगी।
मानकों के अनुसार की गई गणना, निकला 47 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन
जब क्रॉप कटिंग की प्रक्रिया पूरी हुई, तब जिलाधिकारी ने संबंधित अधिकारियों को आदेश दिया कि राजस्व परिषद द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार ही उपज का आकलन किया जाए। इस निर्देश का सख्ती से पालन किया गया।
खेत से प्राप्त गेहूं की मात्रा के आधार पर जब गणना की गई, तो 47 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की औसत उपज का आंकलन सामने आया। यह आंकड़ा प्रशासन को खेती की संभावनाओं को समझने में मदद करेगा और साथ ही, नीति निर्धारण के लिए उपयोगी साबित होगा।
फील्ड स्तर पर नजर रखने पहुंचे अधिकारी, बनी पारदर्शिता की मिसाल
इस दौरान प्रशासनिक अधिकारियों की उपस्थिति ने समूचे वातावरण को विश्वास से भर दिया। तहसीलदार कृष्णकांत मिश्रा, कानूनगो अश्विनी श्रीवास्तव और लेखपाल मानवेंद्र सिंह भी मौके पर मौजूद रहे। उन्होंने जिलाधिकारी के समक्ष समस्त प्रक्रिया को निष्पक्षता से संचालित किया।
फसल कटाई जैसे छोटे से लगने वाले कार्य को इस स्तर पर गंभीरता से लेना, प्रशासन की संवेदनशीलता और कार्य के प्रति ईमानदारी को दर्शाता है। यही कारण है कि किसानों में भी प्रशासन के प्रति भरोसा और जागरूकता बढ़ी है।
कृषकों को मिला भरोसा, उपज के आंकलन में नहीं होगी चूक
जैसे ही क्रॉप कटिंग की प्रक्रिया पूरी हुई, आसपास के किसान भी इस प्रक्रिया को देखने के लिए जमा हो गए। उन्होंने पहली बार इतने करीब से देखा कि कैसे उनकी मेहनत का मूल्यांकन होता है। जिलाधिकारी की उपस्थिति से उन्हें यह विश्वास हुआ कि अब उपज के आंकड़े बिना किसी भेदभाव के तय होंगे।
यह पहल प्रशासनिक प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखी जा रही है। इसके माध्यम से किसानों के हितों की रक्षा सुनिश्चित की जा रही है, जिससे भविष्य में उपज आधारित मुआवज़े या योजनाओं का लाभ सटीकता से मिल सके।
अन्य क्षेत्रों में भी क्रॉप कटिंग की प्रक्रिया को मिलेगा बल
इस सफल आयोजन के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि जिले के अन्य क्षेत्रों में भी इस प्रक्रिया को सशक्त बनाया जाएगा। रेंडम चयन और मानकों का पालन करते हुए उपज का सही-सही मूल्यांकन किया जा सकेगा।
इसके लिए प्रशासन की ओर से क्षेत्रीय अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी किए जाएंगे ताकि कोई भी क्षेत्र उपेक्षित न रहे। इस प्रणाली से पूरे जिले की औसत उपज के सही आंकड़े मिल पाएंगे और नीतियों में अधिक वस्तुनिष्ठता आएगी।
सरकारी योजनाओं की नींव बनेगी यह प्रक्रिया, मिलेगा किसानों को लाभ
यह प्रक्रिया सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि यही आंकड़े भविष्य की सरकारी योजनाओं की नींव रखते हैं। बीमा, सब्सिडी और आपदा राहत जैसी योजनाओं में फसल की उपज के आधार पर ही लाभ तय किया जाता है।
दिव्या मित्तल जैसी अधिकारी द्वारा व्यक्तिगत रूप से खेत पर जाकर प्रक्रिया का निरीक्षण करना यह दर्शाता है कि किसानों की समस्याओं को जमीन से जुड़कर समझा जा रहा है। इससे योजना निर्माण की प्रक्रिया में सच्चाई का समावेश सुनिश्चित होता है।
नवीन तकनीकों के साथ जोड़ा जाएगा मूल्यांकन कार्य
भविष्य में क्रॉप कटिंग जैसे कार्यों में तकनीकी संसाधनों को भी जोड़े जाने की संभावना पर विचार किया जा रहा है। ड्रोन, जीआईएस और डिजिटल उपकरणों की सहायता से अधिक सटीक आंकड़े एकत्रित किए जा सकते हैं।
इस दिशा में प्रशासन ने संकेत दिए हैं कि पारंपरिक तरीकों के साथ तकनीक का तालमेल बैठाकर कृषि मूल्यांकन को अधिक आधुनिक और भरोसेमंद बनाया जाएगा। इससे शासन को समय पर और वस्तुनिष्ठ डेटा उपलब्ध कराया जा सकेगा।
स्थानीय स्तर पर बना संवाद, प्रशासन-किसान के बीच बढ़ा विश्वास
इस मौके ने एक और सकारात्मक संदेश दिया। जब प्रशासनिक अधिकारी सीधे किसानों के बीच पहुंचते हैं, तब एक भरोसे की दीवार बनती है। रामकेवल गुप्ता जैसे कृषकों ने भी यह कहा कि पहली बार उन्हें लगा कि उनकी मेहनत को गंभीरता से लिया जा रहा है।
कृषकों को अपने अधिकार और प्रक्रियाओं की जानकारी भी इसी प्रकार की पारदर्शी पहलों से मिलती है। यह संवाद भविष्य में नीति निर्माण में उनके सुझावों को भी शामिल करने का मार्ग प्रशस्त करता है।
-अमित मणि त्रिपाठी