LokSabha Election 2024: क्या मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर दोबारा खिलेगा कमल?

क्या दोबारा खिलेगा कमल?
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यूपी के मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट किसान आंदोलन के चलते सुर्खियों में रहा है। यह सीट जाटों का बेल्ट क्षेत्र माना जाता है। जाटों की सबसे बड़ी पंचायत सर्वखाप का केंद्र सोलन इसी लोकसभा का हिस्सा है। यही कारण है कि मुजफ्फरनगर जाटलैंड की पहचान के साथ सीधे तौर पर जुड़ता है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि सियासत में जिन चेहरों की पहचान ही जाटों के अगुआ के तौर पर बनी और अपनी इस पहचान को सियासी मंचों पर लगातार दोहराया, वह यहां की जनता का समर्थन हासिल करने में नाकामयाब साबित हुआ है। किसान यूनियन की राजनीति करने वाले चेहरों की भी सियासी पारी कभी सफल नहीं हुई है। मुजफ्फरनगर ने 5 बार जाट चेहरे को चुनकर संसद भेजा। पांचों बार यह चेहरे भाजपा के टिकट पर ही चुनाव लड़े थे। मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए दंगा के बाद पश्चिमी यूपी समेत इस शहर का सियासी समीकरण ही बदलकर रख दिया था। गुड़ के इस शहर के मतदाता का मिजाज मोदी लहर के साथ ही बहने लगा है। इस बार भाजपा ने संजीव कुमार बालियान पर तीसरी बार दाव लगाया है। जबकि इंडिया गठबंधन के तहत सपा ने हरेंद्र सिंह मलिक उम्मीदवार बनाया है। वहीं बसपा ने दारा सिंह प्रजापति को मैदान में उतारा है।

लोकसभा चुनाव में 2019 में भाजपा के संजीव कुमार बालियान ने रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह को महज 6,526 वोट से हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में रालोद का बसपा और सपा के साथ गठबंधन था। संजीव कुमार बालियान को 5,73,780 और चौधरी अजित सिंह को 5,67,254 वोट मिले थे। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा के संजीव कुमार बालियान ने बसपा के कादिर राणा को 4,01,150 वोट से हराया था। इस चुनाव में संजीव कुमार बालियान को 6,53,391 और कादिर राणा को 2,52,241 वोट मिले थे। जबकि सपा के चौधरी वीरेंद्र सिंह को 1,60,810 और कांग्रेस के पंकज अग्रवाल को महज 12,937 वोट ही मिले थे। मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 03 है। इसमें वर्तमान में 5 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इस लोकसभा क्षेत्र का गठन मुजफ्फरनगर जिले के खतौली, बुढ़ाना, चरथावल व मुजफ्फरनगर और मेरठ जिले के सरधना विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है। फिलहाल इन 5 सीटों में से एक पर भाजपा और दो-दो पर सपा व रालोद के विधायक हैं। यह लोकसभा क्षेत्र 1952 में अस्तित्व में आया था। यहां कुल 18,16, 284  मतदाता हैं। जिनमें से  9,68,265 पुरुष और 8,47,875 महिला मतदाता हैं। बता दें कि मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 11,54,192 यानी 68.20 प्रतिशत मतदान हुआ था।

मुजफ्फरनगर लोकसभा का राजनीतिक इतिहास

गंगा-जमुना के दोआब में बसा मुजफ्फरनगर वह जगह है, जहां वहलना जैन मंदिर है। इस मंदिर की दीवार के एक ओर मस्जिद और दूसरी ओर शिव मंदिर से सटी है। मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर अब तक हुए 17 चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के खाते में बराबर जीत गई है। दोनों को ही 5-5 बार जीत मिली है। यह अलग बात है कि कांग्रेस आखिरी बार 20 साल पहले जीती थी और भाजपा इस समय यहां काबिज है। आजादी के बाद हुए पहले तीन चुनाव में कांग्रेस को यहां जीत मिली। 1971 में इंदिरा लहर में कांग्रेस ने सीपीआई के विजय पाल सिंह को समर्थन दिया तो यहां की जनता भी उनके साथ खड़ी हो गई। लेकिन 1977 में इंदिरा हटाओ के नारे में जनता पार्टी का साथ दिया तो 1984 में इंदिरा की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर में कांग्रेस के खाते में फिर जीत आई।

1989 में वीपी सिंह जब बोफोर्स का मुद्दा लेकर सड़क पर उतरे तो मुजफ्फरनगर ने उनके उम्मीदवार मुफ्ती मुहम्मद सईद को जिताकर संसद भेज दिया। जब देश में 1991 में रामलहर चली तो यहां के मतदाता उसके साथ बह चले और 1998 तक भाजपा के साथ रहे। लेकिन 1999 में फिर कांग्रेस को मौका मिला और इसके बाद सपा और बसपा का भी इस सीट पर खाता खुला। 2014 में दंगे की आंच और मोदी लहर ने यहां का मिजाज बदला और भाजपा का परचम लहराया, जो अब तक कायम है। बता दें कि किसानों के मसीहा और जाट राजनीति के सबसे बड़े चेहरे चौधरी चरण सिंह ने 1971 में यहां से चुनाव लड़ा था, लेकिन उनको हार का सामना करना पड़ा था। नरेश कुमार बालियान यहां से संसद पहुंचने वाले पहले जाट थे, जो 1991 में भाजपा के टिकट से जीते। उन्होंने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद को हराया था। 1996 और 1998 में भाजपा से सोहनवीर सिंह और 2014 और 2019 में संजीव बालियान इस सीट से संसद पहुंचने वाले जाट चेहरे हैं।

मुजफ्फरनगर जातीय समीकरण

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां मुस्लिम और जाट मतदाताओं की गोलबंदी अहम मानी जाती है। कुल मतदाताओं के एक चौथाई से अधिक भागीदारी मुस्लिमों की है। जाट मतदाताओं को जोड़ दें तो संख्या 40 प्रतिशत से अधिक होती है। हालांकि, दलितों का साथ भी यहां निर्णायक भूमिका निभाता है। पिछड़ी जातियों में कश्यप, सैनी की अच्छी तादाद है तो ब्राह्मण, वैश्य सहित अन्य अगड़ी जातियां भी समीकरणों को प्रभावित करती हैं। कश्यप, सैनी पिछड़े त्यागी ब्राह्मण, दलित वोटर प्रभावी हैं। हालांकि, 90 के दशक में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का अंकुर पनपने के बाद वह प्रभावी फैक्टर हो गया। यही वजह है कि पिछले तीन दशकों में हुए अधिकतर चुनावों में पहले-दूसरे पायदान पर भाजपा ही रही है।

अब तक चुने गए सांसद

कांग्रेस से हीरा वल्लभ त्रिपाठी, सुंदर लाल और अजित प्रसाद जैन 1952 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
कांग्रेस से सुमत प्रसाद 1957 और 1962 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से लताफ़त अली खान 1967 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से विजयपाल सिंह 1967 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
जनता पार्टी से सईद मुर्तजा 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
जनता पार्टी (सेक्युलर) से गयूर अली खान 1980 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
कांग्रेस से धर्मवीर सिंह त्यागी 1984 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
जनता दल से मुफ़्ती मोहम्मद सईद 1989 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
भाजपा से नरेश कुमार बालियान 1991 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
भाजपा से सोहनवीर सिंह 1996 और 1998  में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
कांग्रेस से एस सईदुज्जमां 1999 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
सपा से मुनव्वर हसन 2004 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
बसपा से कादिर राणा 2009 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
भाजपा से संजीव बालियान 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।