यूपी का बागपत जाट-राजनीति का केंद्र है। कभी यह क्षेत्र मेरठ का हिस्सा हुआ करता था। यह लोकसभा सीट चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि रही है, जिन्हें हाल ही में भारत सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया है। पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह की पहचान भूमिधर किसानों के नेता, महात्मा गांधी के अनुयायी और खेती से जुड़ी अर्थव्यवस्था विशेषज्ञ के तौर पर रही है। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा के उम्मीदवार डॉ. सत्यपाल सिंह ने 23502 वोटों से जीत दर्ज की थी। डॉ. सत्यपाल सिंह को 525789 और आरएलडी के जयंत चौधरी को 502287 वोट मिले थे। बागपत लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 11 है। यहां वर्तमान में 5 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इस लोकसभा क्षेत्र का गठन बागपत जिले के बागपत बड़ौत, छपरौली और गाजियाबाद के मोदीनगर और मेरठ के सिवालखास विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर हुआ है। बागपत लोकसभा क्षेत्र 1967 में अस्तित्व में आया था। यहां कुल 16,16,476 मतदाता हैं। जिनमें से 7,19,241 पुरुष और 8,97,150 महिला मतदाता हैं। बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 64.68 प्रतिशत मतदान हुआ था।
बागपत लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास
1957 और 1962 के चुनावों में यह क्षेत्र सरधना लोकसभा क्षेत्र के अधीन था। 1957 में यहां से प्रसिद्ध क्रांतिकारी विष्णु चंद्र दुबलिश ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की थी। उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के पीतम सिंह को हराया था। 1962 में कांग्रेस के प्रत्याशी कृष्ण चंद्र शर्मा ने निर्दलीय प्रत्याशी रघुवीर सिंह शास्त्री को हराकर सरधना लोकसभा सीट से अपनी जीत दर्ज कराई थी। फिर 1967 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय रघुवीर सिंह शास्त्री ने कांग्रेस के कृष्ण चंद्र शर्मा को 87,558 वोटों से हराया था। जहां रघुवीर सिंह शास्त्री को कुल 1,54,518 वोट मिले थे तो वहीं केसी शर्मा को सिर्फ 66,960 वोट ही मिले। 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां से रामचंद्र विकल उम्मीदवार को बनाया था। कांग्रेस के सामने भारतीय क्रांति दल ने रघुवीर सिंह को उम्मीदवार बनाया, लेकिन रघुवीर सिंह चुनाव हार गए। दोनों के बीच हार का अंतर करीब 1,58,010 वोटों का था। 1974 में रामचंद्र विकल के प्रयास से दिल्ली-सहारनपुर वाया शामली रेल लाइन का निर्माण हुआ था, जिसके लिए आज भी उन्हें याद किया जाता है। रेल लाइन के चालू होने से न केवल बागपत बल्कि दूसरे जिलों के भी लाखों लोगों का सफर आसान हो गया है। उधर 1971 में ही पड़ोस के मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र में चौधरी चरण सिंह की हार हुई थी, सीपीआई के विजयपाल सिंह ने उन्हें 50,279 वोटों से हराया था। इमरजेंसी के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में चौधरी चरण सिंह मुजफ्फरनगर की जगह बागपत लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और उन्होंने कांग्रेस के रामचंद्र विकाल को 1,21,538 वोटों से हराकर बड़ी जीत दर्ज की। चौधरी चरण सिंह की जीत का सिलसिला यहीं नहीं रुका, इसके बाद वे 1980 और 1984 में भी सांसद चुने गए। 1980 में भी उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार रामचंद्र को हराया। 1984 में फिर उन्होंने कांग्रेस के महेश चंद को 85,674 वोटों से हराया था।
1989 के चुनाव में बेटे अजित सिंह की राजनीति में एंट्री
चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजित सिंह 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां से जनता दल के प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए। 1977 के बाद 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में विरोधी दलों का राष्ट्रीय गठबंधन ‘नेशनल फ्रंट’ के नाम से मैदान में उतरा था। इस मोर्चे को बीजेपी और वाममोर्चे का भी बाहरी समर्थन हासिल था। उस चुनाव में जनता दल के उम्मीदवार अजित सिंह चुनाव जीत गए। उन्होंने कांग्रेस के महेश शर्मा को भारी वोटों के अंतर से हराया था। इसके बाद 1991 में भी उन्होंने जनता दल उम्मीदवार के प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की थी। बता दें कि 1991 के लोकसभा चुनाव में जनता दल से 11 सांसद चुने गए थे। जिनमें से आठ सांसदों ने एक-एक करके अजित सिंह से किनारा कर लिया। अंत में सिर्फ दो सांसद उनके साथ रह गए थे। जिसके बाद अजित सिंह ने जनता दल का कांग्रेस में विलय कर दिया। इसके बाद 1996 में वे कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में तीसरी बार सांसद चुने गए। जहां उन्होंने सपा के मुखिया गुर्जर को 1,98,891 वोटों से हराया था।
चौधरियों के गढ़ में बीजेपी की एंट्री
अजित सिंह के कांग्रेस में शामिल होने की बात इलाके के जाट समुदाय के चौधरियों को पसंद नहीं आई। और उन लोगों ने अजित सिंह पर दबाव बनाया कि वे अपनी अलग पहचान बनाए रखें। इसी बीच विधानसभा के चुनाव आ गए। टिकट के बंटवारे पर अजित की कांग्रेस से भी खटपट हुई और कुछ महीनों के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की मदद से नई भारतीय किसान कामगार पार्टी बनाई। कांग्रेस छोड़ने के साथ ही उनकी लोकसभा की सदस्यता भी चली गई। जिसके बाद 1997 में बागपत लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। अजित ने भारतीय किसान कामगार पार्टी (भाकिकापा) के टिकट पर यह उपचुनाव जीता। उधर केंद्रीय राजनीति में लगातार चल रहे बदलाव के कारण 1998 में फिर लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें पहली बार बागपत से बीजेपी को सफलता मिली। बीजेपी के टिकट पर सोमपाल सिंह शास्त्री ने अजित सिंह को हरा दिया। बता दें कि इस चुनाव में अजित सिंह भारतीय किसान कामगार पार्टी (भाकिकापा) के प्रत्याशी के रूप में उतरे थे। सोमपाल सिंह शास्त्री ने उनको 44,706 वोटों से हराया था।
अजित सिंह ने रालोद का किया गठन
1998 में चुनाव हारने के बाद अजित सिंह ने भारतीय किसान कामगार पार्टी (भाकिकापा) को अलविदा कह दिया। फिर उन्होंने राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के नाम से अपनी पार्टी संगठित की, जिसे इन दिनों उनके पुत्र जयंत चौधरी संचालित कर रहे हैं। अजित सिंह 1999 में रालोद के टिकट पर बागपत लोकसभा सीट से चुनाव लड़ें और बीजेपी के सोमपाल शास्त्री को 1,54,419 वोटों से हरा दिया। बता दें कि सोमपाल शास्त्री को हराना उनके लिए शानदार जीत थी, क्योंकि एक साल पहले ही वे सोमपाल से चुनाव हार गए थे। अजित सिंह 1999 के बाद 2004 और 2009 में भी इस सीट से चुनाव जीते। लेकिन उनकी यह विजय-यात्रा 2014 में रुक गई। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से यहां से बाजी मारी। बीजेपी ने सत्यपाल सिंह को यहां से उम्मीदवार बनाया, जिन्होंने बीजेपी को दूसरी बार इस सीट पर जीत दिलाई। उस चुनाव में सपा के गुलाम मुहम्मद दूसरे और अजित सिंह तीसरे स्थान पर रहे।
चौधरी चरण सिंह की विरासत पर छाये असमंजस के बादल
चौधरी अजित सिंह का 6 मई 2021 को निधन हो गया। उनके बाद 2019 के चुनाव में उनके बेटे जयंत चौधरी इस क्षेत्र से चुनाव में उतरे। पर उनको इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी के सत्यपाल सिंह ने फिर से यहां से बाजी मारी। जयंत चौधरी काफी छोटे अंतर से यह चुनाव हारे। लेकिन इस हार के बाद चौधरी चरण सिंह की विरासत पर असमंजस के बादल छाए रहे। इस बार उन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन किया है, पर रालोद के लिए दो सीटें ही छोड़ी गई हैं।
बागपत लोकसभा क्षेत्र का जातीय समीकरण
बागपत लोकसभा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 3,50,000 है। उनके बाद जाट मतदाताओं की संख्या 4,00,00 हैं, तो गुर्जर और राजपूत भी करीब 1,00,000 से अधिक हैं। इस सीट पर ब्राह्मण त्यागी करीब 1,50,000 हैं। वहीं 1,50,000 दलित और 50,000 यादव मतदाता हैं। इसके अलावा पिछड़े और अन्य पिछड़े मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है।
बागपत लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद
कांग्रेस से विष्णु चंद्र दुबलिश 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
कांग्रेस से कृष्ण चंद्र शर्मा 1962 में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
निर्दलीय से रघुवीर सिंह शस्त्री 1967 में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
कांग्रेस से रामचंद्र विकल 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
जनता पार्टी से चौधरी चरण सिंह 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
जनता पार्टी-एस से चौधरी चरण सिंह 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
लोकतांत्रिक क्रांति दल से चौधरी चरण सिंह 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
जनता पार्टी से अजित सिंह 1989 और 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
कांग्रेस से अजित सिंह 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
भारतीय किसान कामगार पार्टी से अजित सिंह 1997 में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
भाजपा से सोमपाल शास्त्री 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
राष्ट्रीय लोक दल से अजित सिंह 1999, 2004 और 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
भाजपा से डॉ सत्यपाल सिंह 2014 और 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।