संगीत की दुनिया में जिनका नाम हमेशा चमकता रहेगा, वह हैं उस्ताद जाकिर हुसैन। 73 वर्ष की उम्र में संगीत जगत के इस महानायक ने दुनिया को अलविदा कह दिया। 15 दिसंबर 2024 को, सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस जैसी गंभीर बीमारी से जूझते हुए, उन्होंने अपने जीवन के आखिरी पल भी संगीत के प्रति अपने समर्पण को बनाए रखा।
संगीत में उनकी अद्वितीय विरासत
तबला वादन में अपनी कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले जाकिर हुसैन, उस्ताद अल्ला रक्खा के पुत्र थे। उन्होंने अपनी कला को न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में एक नई पहचान दिलाई। महज 11 साल की उम्र में अमेरिका में अपना पहला कॉन्सर्ट करने वाले जाकिर ने तबले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाया।
पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित
उस्ताद जाकिर हुसैन को भारतीय कला के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने तीन महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सम्मान दिए।
- 1988 में पद्म श्री: उनकी कला को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- 2002 में पद्म भूषण: भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर स्थापित करने के लिए उन्हें तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से नवाजा गया।
- 2023 में पद्म विभूषण: भारतीय संगीत और तबला वादन में उनके अद्वितीय योगदान के लिए उन्हें यह दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार प्रदान किया गया।
ग्रैमी अवॉर्ड्स में ऐतिहासिक उपलब्धियां
उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपने संगीत के जरिए वैश्विक मंच पर भी भारतीय शास्त्रीय संगीत का परचम लहराया। उनके नाम कुल पांच ग्रैमी अवॉर्ड्स हैं, जो उनकी प्रतिभा और योगदान की अंतरराष्ट्रीय मान्यता को दर्शाते हैं।
1992: पहला ग्रैमी पुरस्कार
- मिकी हार्ट के साथ सह-निर्मित एल्बम ‘प्लैनेट ड्रम’ के लिए उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ विश्व संगीत एल्बम’ श्रेणी में पहला ग्रैमी पुरस्कार मिला।
2009: दूसरा ग्रैमी पुरस्कार
- ‘ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट’ के लिए उन्हें ‘समकालीन विश्व संगीत एल्बम श्रेणी’ में सम्मानित किया गया। इस परियोजना में मिकी हार्ट, सिकिरू अडेपोजू और जियोवानी हिडाल्गो ने भी योगदान दिया था।
2024: तीन और ग्रैमी पुरस्कार
66वें वार्षिक ग्रैमी अवार्ड्स में उस्ताद जाकिर हुसैन को एक साथ तीन प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले।
- एल्बम ‘पश्तो’: अमेरिकी बैंजो वादक बेला फ्लेक, बेसिस्ट एडगर मेयर और भारतीय बांसुरी वादक राकेश चौरसिया के साथ मिलकर इस एल्बम को तैयार किया गया। इसे ‘बेस्ट कंटेम्पररी वर्ल्ड म्यूजिक एल्बम’ का पुरस्कार मिला।
- एल्बम ‘ऐज वी स्पीक’: फ्लेक, मेयर और चौरसिया के साथ उनके इक्लेक्टिक क्लासिकल-मीट-जैज एल्बम ने उन्हें ‘बेस्ट कंटेम्पररी इंस्ट्रूमेंटल एल्बम’ का ग्रैमी दिलाया।
- एल्बम ‘दिस मोमेंट’: विश्व-फ्यूजन बैंड ‘शक्ति’ के सहयोग से इस एल्बम को तैयार किया गया, जिसने उन्हें तीसरा ग्रैमी पुरस्कार दिलाया।
जन्म और बचपन की कहानी
उनका जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ। उनके पिता, उस्ताद अल्ला रक्खा, स्वयं एक प्रसिद्ध तबला वादक थे, जिनसे जाकिर ने तबला बजाने का हुनर विरासत में पाया। बचपन में ही उन्होंने वाद्य यंत्रों पर पकड़ बनानी शुरू कर दी। मात्र तीन साल की उम्र में उन्होंने पखावज बजाना सीख लिया था। उनके पिता ने ही उन्हें तबला वादन, श्लोक और मंत्रों का ज्ञान सिखाया।
जाकिर हुसैन हमेशा अपने पिता का आभार व्यक्त करते थे, जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनका पूरा ध्यान संगीत और कला पर केंद्रित रहे। उस्ताद अल्ला रक्खा ने न केवल उन्हें तबले का प्रशिक्षण दिया, बल्कि शास्त्रीय संगीत की गहराई और जिम्मेदारियों को भी समझाया।
शिक्षा और प्रारंभिक सफर
जाकिर हुसैन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के माहिम स्थित सेंट माइकल स्कूल से पूरी की। इसके बाद उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से स्नातक किया। बचपन से ही संगीत के प्रति गहरी रुचि और अपने पिता, उस्ताद अल्ला रक्खा के मार्गदर्शन में उन्होंने तबले की कला में महारत हासिल की।
पहला एल्बम और तबले की पहचान
उस्ताद जाकिर हुसैन के तबले की थाप ने संगीत प्रेमियों को हमेशा मंत्रमुग्ध किया। जब उनकी उंगलियां तबले पर थिरकतीं, तो श्रोता ‘वाह उस्ताद’ कहकर उनकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाते। जाकिर ने अपनी कला को न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में नई पहचान दिलाई। इतने बड़े मुकाम पर पहुंचने के बाद भी उनकी सादगी और जमीन से जुड़ाव उन्हें खास बनाता था।
11 साल की उम्र में जाकिर ने अमेरिका में अपना पहला कॉन्सर्ट कर पूरी दुनिया को अपनी प्रतिभा से परिचित कराया। इसके बाद 1973 में उन्होंने अपना पहला एल्बम ‘लिविंग इन द मटेरियल वर्ल्ड‘ लॉन्च किया, जिसने उन्हें वैश्विक मंच पर स्थापित किया।
तबला वादन का संघर्ष और समर्पण
बहुत छोटी उम्र में ही जाकिर ने तबले पर अपनी पकड़ इतनी मजबूत कर ली थी कि उन्होंने 11-12 साल की उम्र से ही पेशेवर कॉन्सर्ट में प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। उनका मानना था कि तबला उनकी “सरस्वती” है और इसकी हिफ़ाज़त करना उनका पहला धर्म है।
उन्होंने अपने संघर्षों के बारे में कई बार जिक्र किया। शुरुआती दिनों में वे अपने कॉन्सर्ट के लिए ट्रेन की सामान्य बोगियों में सफर करते थे, क्योंकि उनके पास आरक्षित टिकट खरीदने के पैसे नहीं होते थे। वे तबले को अपनी गोद में लेकर बैठते ताकि उस पर किसी का पैर या जूता न लग जाए। सफर के दौरान वे अखबार बिछाकर नीचे सो जाते, लेकिन तबले को हमेशा अपनी गोद में रखकर उसकी देखभाल करते। शुरुआती दिनों में उन्होंने केवल 5 रुपये कमाए, जो उनके जीवन की सबसे अनमोल कमाई थी।
तबला: उनके जीवन का अटूट हिस्सा
जाकिर के लिए तबला केवल एक वाद्य यंत्र नहीं था, बल्कि उनकी आत्मा का हिस्सा था। उनका मानना था कि तबले के माध्यम से शिवजी के डमरू की दिव्य ध्वनि को प्रसारित किया जा सकता है। सफर के दौरान, जहां भी जाते, तबले की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखते। वह तब तक संघर्ष करते रहे, जब तक उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ। बाद में, सफलता मिलने के बाद, उन्होंने अपने परिवार और संगीत यात्रा के बीच संतुलन बनाकर अपने संघर्षों का फल पाया।
अंतरराष्ट्रीय पहचान और उपलब्धियां
जाकिर हुसैन ने न केवल भारत, बल्कि विदेशों में भी अपनी कला का परचम लहराया। उनके योगदान ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी सफलता में उनके परिवार का भी बड़ा योगदान रहा, जो हमेशा उनके साथ खड़ा रहा।
जाकिर हुसैन पहले भारतीय संगीतकार थे, जिन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने व्हाइट हाउस में कॉन्सर्ट के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने दुनिया भर में भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रचार-प्रसार किया।
फिल्मों में भी आज़माया हाथ
1983 में ‘हीट एंड डस्ट’ फिल्म से अभिनय की शुरुआत करने वाले जाकिर ने ‘साज’ और ‘द परफेक्ट मर्डर’ जैसी फिल्मों में भी अभिनय किया। हालांकि, उनका मन हमेशा संगीत में ही रमा रहा।
परिवार और व्यक्तिगत जीवन
उस्ताद जाकिर हुसैन ने 1978 में कथक नृत्यांगना एंटोनिया मिनीकोला से शादी की, जो इटली की मूल निवासी थीं। एंटोनिया न केवल उनकी जीवनसंगिनी थीं, बल्कि उनकी मैनेजर भी रहीं। कैलिफोर्निया में नृत्य का प्रशिक्षण लेते हुए उनकी मुलाकात जाकिर हुसैन से हुई थी। दोनों की यह मुलाकात जल्द ही एक गहरे रिश्ते में बदल गई।
उनकी दो बेटियां हैं—अनीसा कुरैशी और इजाबेला कुरैशी। बड़ी बेटी अनीसा फिल्म निर्माता हैं, जबकि छोटी बेटी इजाबेला नृत्य का प्रशिक्षण ले रही हैं, जिससे साफ पता चलता है कि उनके बच्चों ने भी कला और रचनात्मकता की विरासत को अपनाया है।
जाकिर हुसैन: मेहनत और समर्पण का प्रतीक
जाकिर हुसैन की कहानी संगीत प्रेमियों और कलाकारों के लिए प्रेरणा है। उन्होंने दिखाया कि सच्ची लगन और कड़ी मेहनत से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। उनका तबला वादन न केवल भारतीय संगीत की पहचान बना, बल्कि दुनिया के हर कोने में उनके नाम का परचम लहराता रहा।
उनका सफर संघर्ष, सादगी और कला के प्रति समर्पण का उदाहरण है। जाकिर हुसैन ने साबित किया कि अपनी विरासत और सपनों को साथ लेकर कैसे सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा जा सकता है।