उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने आज सुबह 8.16 पर ली अंतिम सांस। वह 82 साल के थे। गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में वह वेंटिलेटर पर थे। पिछले रविवार से उनकी हालत काफ़ी नाज़ुक बनी हुई थी। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद से सपा कार्यकर्ताओं में शोक की लहर दौड़ गई।
राजनीति में एंट्री करने से पहले मुलायम कुश्ती लड़ते थे। एग्जाम छोड़कर कुश्ती लड़ने चले जाते थे। कवि सम्मेलन में अकड़ दिखा रहे दरोगा को मंच पर ही पटक दिया था। सियासत के भी बड़े अखाड़ेबाज बने, विरोधियों को चित किया। सियासी और निजी जिंदगी आसान नहीं थी, पर लड़ते रहे। मौत सामने आई तो उससे भी दो-दो हाथ किए। मुलायम सिर्फ उत्तर प्रदेश के नहीं बल्कि पूरे देश के नेताजी थे।
पहलवानी से लेकर शिक्षक की नौकरी की उसके बाद राजनीतिक जीवन में प्रवेश कर मुलायम ने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की। वह उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री और एक बार देश के रक्षा मंत्री रहे।
विधान परिषद के पूर्व सभापति चौधरी सुखराम सिंह यादव बताते हैं कि माधोगढ़ (जालौन) विधानसभा सीट पर उप चुनाव होना था। मेरे पिता और मुलायम सिंह के मित्र चौधरी हरमोहन सिंह वहां चुनाव प्रचार कर रहे थे। मैं भी साथ में था। रात-रात भर गांवों में जाकर लोगों से मिलना-जुलना और लोगों से वोट मांगने की परंपरा थी। एक दिन रात में हम लोग एक गांव से दूसरे गांव जा रहे थे। कुठवन ईलाके के पास एक गांव में फायरिंग की आवाज सुनाई दी। ‘नेताजी’ ने मुझसे कहा कि जीप गांव की तरफ़ घुमाव जहां से फायरिंग की आवाज़ आ रही है। मुलायम सिंह ने कहा शायद, डकैती पड़ रही है। उन्होंने आस-पड़ोस के गांवों से कुछ लोगों को भी बुलवाया और हम सभी लोग उस गांव के पास पहुंचे, नेताजी सबसे आगे थे। गांव से थोड़ा पहले रुककर उन्होंने डकैतों को ललकारा तो डकेतों ने हमपर फायरिंग शुरू कर दी। पर, नेताजी पूरी तरह से बेखौफ खड़े रहे। आखिर में डकैतों को गांव छोड़ कर भागना पड़ा। गांव के सभी लोग सुरक्षित बच गए।
नेताजी की कोठी व पार्टी कार्यालयों में बहुत से ऐसे लोग आते थे जिनके पास ठंड के दिनों में गर्म कपड़े नहीं होते थे, जूते नहीं थे या जो बीमार होते थे। ऐसे तमाम उदाहरण हैं कि नेताजी ने उनकी समस्यों का निष्तारण करने के साथ ही उनके लिए कपड़ों, जूतों और किराये तक की व्यवस्था करते थे।
विधानसभा 2012 का चुनाव चल रहा था, नेताजी को चुनावी सभा में जाना था। कृष्णानगर के पास यातायात व्यवस्थित रखने के लिए पुलिस ने एक दूधिये को रोका तो उसकी साइकिल गिर गई और दूध बिखर गया। नेताजी ने गाड़ी रुकवाई। डरे-सहमे दूधिये को बुलाकर पूछा कि उसका कितना नुकसान हुआ है। उसे तत्काल दो हजार रुपये दिए। गाड़ी में जाते हुए नेताजी से राजनीतिक चर्चा चल रही थी लेकिन इस घटना के बाद एयरपोर्ट तक दूधिये पर ही चर्चा होती रही। नेताजी कह रहे थे कि कितनी जल्दी उठकर कितने घरों से दूध लाया होगा। घर जाकर वह क्या जवाब देता? नेताजी इतने संवेदनशील थे कि किसी को दुखी नहीं देख सकते थे।
सियासत में धुव्रीकरण की राजनीति के लिए भी मुलायम सिंह यादव को याद किया जाएगा। अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन के जरिए उन्होंने धुव्रीकरण को जो दिशा दी, सत्तासीन भाजपा को उसका सीधा सियासी लाभ मिला। सन् 1990 में कारसेवकों के अयोध्या आह्वान के समय मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री न होते तो शायद भाजपा के साथ समाजवादी पार्टी को वह मुकाम न मिलता जो अब तक मिला है।