द्वारका, श्रीकृष्ण की पवित्र नगरी, जो कभी समृद्धि और वैभव का प्रतीक थी, आज समुद्र की गहराई में लुप्त हो चुकी है। इस नगर का उल्लेख प्राचीन पौराणिक ग्रंथों और महाभारत में मिलता है। द्वारका न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि पुरातात्विक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अनमोल है। इसका अस्तित्व, इसका पतन और समुद्र में विलीन होने की कथा ने इतिहासकारों और वैज्ञानिकों के बीच जिज्ञासा का विषय बना दिया है।
द्वारका: एक पौराणिक दृष्टि, भगवान श्रीकृष्ण की नगरी
श्रीमद्भागवत और महाभारत के अनुसार, श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था और कंस वध के बाद उन्हें मथुरा छोड़नी पड़ी थी। इसके बाद उन्होंने अपनी प्रजा के साथ पश्चिम की ओर प्रस्थान किया और समुद्र तट पर बसे एक द्वीप पर “द्वारका” नामक नगर की स्थापना की। यह नगर वास्तुशिल्प का अद्भुत नमूना था, जिसके द्वार सोने से बने थे और 900 महलों से सुसज्जित था।
समुद्र में डूबने की कथा
महाभारत के अनुसार, पांडवों और कौरवों के बीच महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद, गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया था कि जिस प्रकार कौरव वंश का नाश हुआ, उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा। इसी श्राप के कारण यदुवंशी आपस में लड़ाई कर मर गए। श्रीकृष्ण ने वन में देह त्याग दिया और उनके निधन के बाद अर्जुन ने द्वारका की शेष प्रजा को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। इसी दौरान द्वारका समुद्र की लहरों में विलीन हो गई।
मिथकों और मान्यताओं का विश्लेषण
गांधारी के श्राप के अलावा एक अन्य मान्यता यह भी है कि ऋषियों ने श्रीकृष्ण के पुत्र साम को स्त्री के रूप में प्रस्तुत कर उनका अपमान किया था, जिसके कारण ऋषियों ने श्राप दिया कि साम के गर्भ से उत्पन्न मूसल से यदुवंश का नाश होगा। इस श्राप की पूर्ति होने के बाद द्वारका के डूबने की घटना घटित हुई।
द्वारका का पुरातात्विक प्रमाण, समुद्री खोज और अनुसंधान
20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, द्वारका के अस्तित्व को लेकर चल रही चर्चाओं के बीच 1979 में प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद् डॉ. एस.आर. राव ने समुद्र के भीतर खुदाई की। उनकी टीम ने अरब सागर में लगभग 40 मीटर की गहराई पर कई प्राचीन अवशेष खोजे। खुदाई के दौरान निम्नलिखित प्रमुख वस्तुएं प्राप्त हुईं:
9000 साल पुरानी वास्तुकला के अवशेष
डॉ. एस.आर. राव के अनुसार, इन अवशेषों की संरचना महाभारत में उल्लिखित द्वारका की वास्तुकला के विवरण से मेल खाती है। खुदाई में मिली दीवार 560 मीटर लंबी थी, जो एक मजबूत और संगठित शहर का प्रमाण है।
खुदाई से प्राप्त वस्तुओं की कार्बन डेटिंग के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में भेजा गया। इन वस्तुओं की आयु लगभग 9000 वर्ष आंकी गई, जो सिंधु घाटी सभ्यता से भी प्राचीन मानी जाती है। यह खोज सिद्ध करती है कि द्वारका कोई काल्पनिक नगर नहीं था, बल्कि एक वास्तविक और समृद्ध सभ्यता का हिस्सा था।
प्राचीन ग्रंथों में द्वारका का उल्लेख
महाभारत और श्रीमद्भागवत के अतिरिक्त कई अन्य ग्रंथों में द्वारका का विवरण मिलता है। उदाहरण के लिए, भावनगर के सामंत सिंहा दित्य के तांबे की पट्टिका (Copper Plate Inscription) में द्वारका को गुजरात के पश्चिमी तट की राजधानी के रूप में वर्णित किया गया है। इस पट्टिका का निर्माण छठी शताब्दी में हुआ था।
विज्ञान और तकनीक का दृष्टिकोण
कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि लगभग 9000 वर्ष पूर्व हिमयुग (Ice Age) के समाप्त होने के कारण समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ा। इस जलस्तर वृद्धि ने कई प्राचीन नगरों को समुद्र में डुबो दिया, जिनमें द्वारका भी एक था। भारतीय समुद्र वैज्ञानिकों का कहना है कि द्वारका के तटीय क्षेत्रों में समुद्री कटाव के कारण द्वारका का बड़ा हिस्सा समुद्र में समा गया।
प्राकृतिक आपदा का सिद्धांत
कुछ भूवैज्ञानिकों का मानना है कि उस समय की भूगर्भीय हलचलों (Tectonic Movements) के कारण समुद्री तल में बदलाव आया और इसी के चलते समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ा। इस प्रकार के भूगर्भीय बदलावों के कारण तटीय क्षेत्र के कई नगर समुद्र में समा गए।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और भारतीय नौसेना ने मिलकर समुद्र के नीचे कई महत्वपूर्ण खोजें कीं। उनके अनुसार, खोजे गए खंडहर विशाल भवन और मंदिरों के अवशेष हैं। पुरातत्त्वविद ए.के. सिन्हा के अनुसार, समुद्र के भीतर और जमीन पर समान प्रकार के अवशेष पाए गए, जो इस तथ्य को मजबूत करते हैं कि द्वारका वास्तव में अस्तित्व में था।
द्वारका के अनसुलझे प्रश्न
द्वारका कब और कैसे डूबी?
क्या यह प्राकृतिक आपदा थी या फिर किसी युद्ध का परिणाम?
क्या एलियंस की भूमिका थी?
कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि द्वारका पर एलियंस के स्पेसशिप से हमला हुआ था, जिसके कारण यह नगर समुद्र में समा गया। यह परिकल्पना प्राचीन एलियन थ्योरी (Ancient Aliens Theory) का हिस्सा है।
क्या द्वारका के सारे अवशेष मिल चुके हैं?
अब भी समुद्र के नीचे द्वारका के और अवशेष खोजे जाने बाकी हैं।
द्वारका का रहस्य धार्मिक, पौराणिक और वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। श्रीकृष्ण की नगरी का अस्तित्व आज भी लोगों की आस्था और विश्वास का केंद्र है। वैज्ञानिक दृष्टि से, द्वारका के समुद्र में समा जाने का कारण समुद्र के जलस्तर का बढ़ना, भूगर्भीय हलचल और प्राकृतिक आपदा माना जाता है। पुरातत्व विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं द्वारा की गई खुदाई ने इस बात की पुष्टि की है कि द्वारका कोई कल्पना नहीं थी, बल्कि एक वास्तविक और समृद्ध नगर था।
यह नगर भले ही समुद्र में समा गया हो, लेकिन इसके अवशेष इतिहास के पन्नों और समुद्र की गहराई में अमर हैं। भविष्य में और अधिक खोजबीन के माध्यम से द्वारका के अनसुलझे रहस्यों पर से पर्दा उठ सकता है। द्वारका की खोज का काम भारत के प्राचीन इतिहास के गौरव को दर्शाता है और यह बताता है कि हमारी संस्कृति कितनी पुरानी और समृद्ध है।
नोट: यह लेख पूर्ण रूप से शोध और विभिन्न स्रोतों पर आधारित है और इसमें मौलिकता बनाए रखी गई है। सभी तर्क और तथ्य पुरातत्वविदों के शोध, वैज्ञानिक रिपोर्टों और प्राचीन ग्रंथों के विश्लेषण पर आधारित हैं।