गाजीपुर, उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के जूनियर हाईस्कूल के लगभग 20 से 25 टीचर्स पिछले 18 सालों से बिना वेतन के छात्रों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं। ये शिक्षक बेसिक शिक्षा विभाग के अधीन आते हैं, लेकिन विभागीय लापरवाही और तकनीकी समस्याओं के कारण उन्हें वेतन से वंचित रखा गया है। इतने लंबे समय तक बिना सैलरी के काम करना न सिर्फ शिक्षकों की आर्थिक स्थिति को खराब कर रहा है, बल्कि उनके आत्मसम्मान को भी चोट पहुंचा रहा है। आखिर ये शिक्षक कब तक बिना वेतन के शिक्षा की मशाल जलाए रखेंगे?
2006 से अटकी सैलरी: क्या है पूरा मामला?
2006 में उत्तर प्रदेश सरकार ने बेसिक शिक्षा विभाग के तहत चलने वाले जूनियर हाईस्कूलों को अनुदानित (Grant-in-aid) किया था। इसके तहत शिक्षकों को सरकार से नियमित वेतन मिलने का प्रावधान था। गाजीपुर जिले के करीब एक दर्जन स्कूल भी इस योजना में शामिल थे। लेकिन, इनमें से कई स्कूलों के शिक्षक आज भी वेतन से वंचित हैं। 20 से 25 सहायक अध्यापक ऐसे हैं, जिन्हें अब तक वेतन नहीं मिला है।
इन शिक्षकों का कहना है कि वे 2006 से लगातार वेतन की मांग कर रहे हैं, लेकिन शासन स्तर पर उनकी आवाज को अनसुना कर दिया गया है। उन्होंने कई बार लखनऊ और इलाहाबाद के सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाए हैं, लेकिन हर बार आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला।
शिक्षकों का संघर्ष जारी: कब मिलेगी राहत?
गाजीपुर के इन शिक्षकों ने हाल ही में विधान परिषद के सभापति और विलंबित समिति के सदस्य पवन कुमार सिंह से मुलाकात की। रायफल क्लब में आयोजित एक बैठक में शिक्षकों ने अपना दर्द बयां किया और वेतन दिलाने की मांग की। पवन कुमार सिंह ने आश्वासन दिया कि उनकी समस्या को शासन स्तर पर पहुंचाया जाएगा और जल्द ही इस पर कार्रवाई की जाएगी।
शिक्षकों ने बताया कि जिन स्कूलों को 2006 में अनुदानित किया गया था, उनमें से अधिकांश स्कूलों के शिक्षकों को सैलरी मिल गई है। लेकिन गाजीपुर के करीब 20-25 सहायक अध्यापकों का वेतन अभी तक तकनीकी समस्याओं के चलते अटका हुआ है।
शिक्षा का जुनून, लेकिन आर्थिक संकट का सामना
इन शिक्षकों का कहना है कि वे अपनी आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद छात्रों को पढ़ाने का काम जारी रखे हुए हैं। हालांकि, उनके परिवारों पर इसका सीधा असर पड़ रहा है। कुछ शिक्षकों को अपने बच्चों की पढ़ाई और परिवार के खर्चे चलाने के लिए उधार लेने की नौबत आ गई है।
शिक्षक अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित हैं, लेकिन उनका कहना है कि सरकार को उनकी मेहनत और संघर्ष का सम्मान करना चाहिए। आखिर कब तक वे बिना वेतन के बच्चों को पढ़ाते रहेंगे?
बैठक में क्या हुआ?
रायफल क्लब में आयोजित इस बैठक में गाजीपुर और जौनपुर जिले के पेंशनधारकों, कर्मचारियों की समस्याओं पर भी चर्चा की गई। डीएम, सीडीओ और अन्य विभागीय अधिकारी भी बैठक में मौजूद थे। इस दौरान पवन कुमार सिंह ने कहा कि विलंबित समिति के माध्यम से शिक्षकों की समस्याओं को शासन स्तर पर उठाया जाएगा और जल्द ही वेतन भुगतान की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
बैठक में यह भी कहा गया कि हर महीने जिला प्रशासन की ओर से बैठक आयोजित की जाएगी, जिसमें लंबित मामलों को हल करने की कोशिश की जाएगी। शिक्षकों को उम्मीद है कि इस बार उनकी बात को गंभीरता से लिया जाएगा और उन्हें उनका हक मिल सकेगा।
शासन स्तर पर फंसा मामला, समाधान कब?
विलंबित समिति के सदस्य पवन कुमार सिंह ने बताया कि यह मामला शासन स्तर पर लंबित है। शिक्षकों का पत्र शासन को ट्रांसफर कर दिया गया है। अब देखना यह होगा कि सरकार कब तक इस मुद्दे को सुलझाने के लिए कदम उठाती है।
शिक्षकों का दर्द: वेतन नहीं तो सम्मान कैसे मिलेगा?
गाजीपुर के ये शिक्षक अपनी वित्तीय तंगी को लेकर बेहद चिंतित हैं। उनका कहना है कि बिना वेतन के इतने सालों तक पढ़ाने के बावजूद सरकार उनकी सुध नहीं ले रही है।
शिक्षकों का कहना है कि उन्हें संविधान के तहत दिए गए अधिकारों के तहत उनका वेतन मिलना चाहिए। यदि सरकार जल्द ही उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती है, तो वे धरना-प्रदर्शन करने पर मजबूर हो जाएंगे।
आशा की किरण: सरकार से उम्मीद
बैठक के दौरान शिक्षकों ने अपनी उम्मीदें फिर से जताई हैं कि सरकार उनकी समस्या का समाधान करेगी। पवन कुमार सिंह ने कहा कि आने वाले कुछ हफ्तों में वेतन भुगतान से संबंधित प्रक्रियाओं को तेजी से पूरा किया जाएगा।
लेकिन सवाल अब भी बना हुआ है: क्या सरकार शिक्षकों को उनका हक दिलाने में कामयाब होगी, या ये शिक्षक आगे भी संघर्ष करते रहेंगे?