देवरिया न्यूज़, जनपद में श्रद्धा और आस्था का माहौल उस समय और भी गरिमामय बन गया जब श्रीमद्भागवत कथा महापुराण की भव्य कलश यात्रा का शुभारंभ हुआ। शुक्रवार को यह यात्रा सालासर मंदिर रागिनी चौराहा से आरंभ होकर नगर के विभिन्न मार्गों से होती हुई अग्रवाल वाटिका पहुंची, जहां इसका आयोजन किया गया। यात्रा में कनोड़िया परिवार सहित सैकड़ों श्रद्धालुओं की सहभागिता ने माहौल को भक्ति रस से सराबोर कर दिया।
सुनहरे वस्त्रों और संगीत की धुनों के बीच भक्ति की भावना इस प्रकार उमड़ पड़ी कि महिलाएं और पुरुष अपने आप को भजन पर थिरकने से रोक नहीं पाए। कथा व्यास श्रीकांत जी शर्मा की सवारी बग्घी पर आकर्षण का केंद्र बनी रही, जो श्रद्धालुओं के बीच दिव्यता का प्रतीक बनकर पहुंची।
परमात्मा की उपस्थिति और आत्मा का प्रकाश
कथा के आरंभिक दिन बाल व्यास श्रीकांत जी शर्मा द्वारा भगवत्कथा की भूमिका प्रस्तुत की गई, जिसमें उन्होंने बताया कि यह ग्रंथ संसार की उलझनों से मुक्ति दिलाने में सहायक है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में हर प्राणी किसी न किसी चिंता में उलझा हुआ है और उससे उबरने का मार्ग परमात्मा की कृपा से ही संभव है।
उन्होंने कहा कि परमात्मा सर्वव्यापक हैं, वे न केवल निकट हैं बल्कि दूर भी, उनका अस्तित्व समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त है। श्री शर्मा ने यह स्पष्ट किया कि ईश्वर को देखना संभव नहीं, लेकिन उन्हें अनुभव किया जा सकता है। आत्मज्ञान ही वह साधन है जो ईश्वर से साक्षात्कार करा सकता है।
सत्संग और भजन की ओर उन्मुख करती प्रेरणा
श्रीकांत जी शर्मा ने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि यदि जीवन में कहीं से उजाला ना मिले तो अपनी आत्मा से ही प्रकाश प्राप्त करना चाहिए। यह प्रकाश सत्संग, कीर्तन और संत महापुरुषों के संपर्क से प्राप्त होता है। उन्होंने बताया कि यह आत्मिक प्रकाश ही वह द्वार है जिससे नारायण के दर्शन संभव हो सकते हैं।
उनका यह वक्तव्य लोगों के हृदय को गहराई से स्पर्श कर गया। भजन, सत्संग और परमात्मा के नाम में रमने की प्रेरणा ने श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस अवसर पर उन्होंने यह भी कहा कि संत जब मिलते हैं तो जीवन में आलोक भर जाते हैं और वह रोशनी कभी कम नहीं होती।
मां कात्यायनी के स्वरूप की भक्ति भाव से प्रस्तुति
बाल व्यास श्रीकांत जी शर्मा ने मां दुर्गा के छठे स्वरूप कात्यायनी का भावपूर्ण वर्णन करते हुए बताया कि यह रूप महर्षि कात्यायन की तपस्या से उत्पन्न हुआ। महर्षि की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उनके घर में पुत्री रूप में जन्म लिया और उन्हें कात्यायनी कहा गया।
यह रूप आमोद्यदायिनी है, जो फल देने वाली मानी जाती हैं। साधक द्वारा आज्ञा चक्र पर केंद्रित ध्यान के माध्यम से इस स्वरूप की उपासना की जाती है। इस प्रकार का साधक अपने जीवन में अलौकिक ऊर्जा से युक्त हो जाता है, जिससे उसका जीवन स्वयं प्रकाशमान हो उठता है।
साधना से जुड़े दिव्य संकेत और आत्मिक ऊर्जा
श्रीकांत जी शर्मा ने स्पष्ट किया कि जब भी कोई साधक ईमानदारी से मां के चरणों में समर्पण करता है, तो उसे जीवन में नई ऊर्जा प्राप्त होती है। साधना का मार्ग आसान नहीं होता, लेकिन मां कात्यायनी की कृपा से वह सुगम हो जाता है। इस प्रकार साधक को आत्मा से जोड़ने वाली यह यात्रा अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती है।
इस अवसर पर उन्होंने बताया कि मां कात्यायनी की उपासना योग साधना के लिए विशेष महत्व रखती है। इस साधना के दौरान जो तेज प्राप्त होता है, वह साधक को इस भौतिक संसार में रहते हुए भी दिव्यता से भर देता है।
श्रद्धा, भक्ति से सराबोर आयोजन
इस श्रीमद्भागवत कथा के आयोजन में क्षेत्रवासियों की भागीदारी उल्लेखनीय रही। कथा में मंजू कानोडिया, विशाल कानोडिया, गौतम कानोडिया, विश्वनाथ कानोडिया, संजय कानोडिया, प्रदीप कानोडिया, विकास कानोडिया, कैलाश कानोडिया सहित अनेक श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने आयोजन को गौरवशाली बना दिया।
इन श्रद्धालुओं ने पूरे आयोजन के दौरान सेवा, भक्ति और अनुशासन का पालन कर आयोजन को भक्तिमय बनाए रखा। उनके समर्पण से कथा स्थल पर सतत दिव्यता बनी रही, जो आने वाले दिनों में कथा के प्रभाव को और भी अधिक प्रभावी बनाएगी।
संस्कृति और परंपरा की अनवरत बहती धारा
श्रीकांत जी शर्मा द्वारा प्रस्तुत कथा न केवल आध्यात्मिक ज्ञान की धारा बहा रही है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा की अमूल्य धरोहर को भी सहेजने का कार्य कर रही है। कथा का प्रत्येक प्रसंग जीवन के किसी न किसी पहलू को छूता है, जिससे श्रोता आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित होते हैं।
इस अवसर पर कथा में पौराणिक प्रसंगों, देवी-देवताओं की लीलाओं और भक्तों की भक्ति भावनाओं का ऐसा संगम प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसे सुनकर जनमानस न केवल भावविभोर हो रहा है, बल्कि उनमें आस्था और विश्वास की लौ और भी तेज हो रही है।
सप्ताह भर चलने वाली इस कथा में जुटेंगे हज़ारों श्रद्धालु
यह भागवत कथा महापर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि लोगों को आत्मिक रूप से जोड़ने वाला उत्सव बन गया है। पूरे सप्ताह चलने वाली इस कथा में देवरिया के कोने-कोने से श्रद्धालु जुड़ने की तैयारी में हैं। लोगों की उम्मीदों और श्रद्धा को देखकर यह कहा जा सकता है कि यह आयोजन जनमानस के लिए प्रेरणास्त्रोत बनेगा।
कथा स्थल पर की जा रही व्यवस्थाएं, स्वच्छता, सुरक्षा और सेवा भावना को देखते हुए यह अनुभव किया गया कि हर पहलू पर विशेष ध्यान दिया गया है। यह आयोजन समाज में धार्मिक चेतना और संस्कारों की पुनर्स्थापना में सहायक सिद्ध होगा।
-अमित मणि त्रिपाठी