देवरिया डेस्क, उत्तर प्रदेश के जनपद देवरिया में चल रही सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस पर परम पूज्य बाल व्यास श्री श्रीकांत शर्मा जी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को एक अत्यंत प्रेरणादायक संदेश दिया। उन्होंने कहा कि संसारिक धन को यदि सिर्फ भोग के लिए खर्च किया जाता है तो वह समाप्त होता है, लेकिन ईश्वर रूपी धन ऐसा धन है जो जितना व्यय होता है, उतना ही बढ़ता जाता है।
उनकी अमृतवाणी से श्रोताओं के हृदयों में नई ऊर्जा का संचार हुआ। साथ ही, यह विचार स्थापित किया गया कि केवल भक्ति से परिपूर्ण व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में धनवान होता है। धन अगर समाज, धर्म और राष्ट्र सेवा में लगाया जाए तो वह अक्षय फल देता है।
भक्ति रहित संपत्ति विनाश का कारण बनती है
श्री श्रीकांत जी शर्मा ने सत्संग में यह भी स्पष्ट किया कि भक्ति के बिना अर्जित किया गया धन एक दिन पतन का कारण बनता है। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि कोई व्यक्ति यदि जवान हो और अपार धन हो, लेकिन सत्संग न मिले तो वह निश्चित ही गलत मार्ग पर चला जाएगा।
उन्होंने श्रद्धालुओं को यह बताया कि जिस प्रकार पवित्र अग्नि में डाला गया घी यज्ञ को पवित्र करता है, वैसे ही भगवान का नाम हर कार्य को शुभ बना देता है। ईश्वर का स्मरण जीवन की हर कठिनाई को सरल बना देता है, यही उनके संदेश का मूल था।
सच्चा धन वही जो समाज के काम आए
कथा के मध्य में श्री श्रीकांत जी ने इस बात पर बल दिया कि भौतिक ऐश्वर्य तब तक अधूरा रहता है जब तक उसमें समाज हित का भाव न हो। उन्होंने कहा कि धन से घर नहीं, धर्म बसता है। उन्होंने यह भी कहा कि सही मायनों में वही धनवान है जो अपने धन को लोक कल्याण में लगाता है।
धन का मूल्य तभी है जब वह भूखे को भोजन, पीड़ित को सहायता और दुखी को सहारा देने के काम आए। उनकी बातों में समाज सेवा की गूंज थी, जो श्रोताओं को सोचने पर विवश कर रही थी।
गोसेवा का महत्व और नंद बाबा का आदर्श उदाहरण
कथा के दौरान श्री श्रीकांत जी शर्मा ने गोधन को संसार में सबसे पूज्यनीय बताया। उन्होंने कहा कि गाय केवल दूध नहीं देती, बल्कि उसकी हर चीज उपयोगी होती है। उन्होंने नंद बाबा का उदाहरण देते हुए बताया कि जब नंद बाबा के घर श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, तब उन्होंने दो लाख गायें दान कर दी थीं।
गायों की सेवा को उन्होंने भारत की आत्मा कहा। उन्होंने कहा कि जब तक गोधन सुरक्षित है, तब तक भारत सुरक्षित है। इस कथन से उन्होंने श्रोताओं को गौ रक्षा के लिए प्रेरित किया।
गायों के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती
श्री श्रीकांत जी शर्मा ने गम्भीर स्वर में कहा कि यदि देश से गाय समाप्त हो जाए, तो भारत का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा। गाय केवल एक पशु नहीं, बल्कि एक चलती-फिरती तीर्थ है। उन्होंने कहा कि भारत ऋषियों और किसानों का देश है और गाय इस धरोहर की सबसे बड़ी संपत्ति है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि राजा दिलीप ने नंदिनी गाय की सेवा कर एक प्रतापी पुत्र रघु को प्राप्त किया। यह प्राचीन प्रसंग आज भी गोसेवा की महिमा को स्पष्ट करता है।
मन की शक्ति को साधे बिना नहीं मिलती सिद्धि
कथा में एक अन्य महत्वपूर्ण बिंदु पर श्री श्रीकांत जी ने ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि संसार में कई माताएं अपने बच्चों को विदेश भेजते समय खाने-पीने की चिंता जताती हैं, पर मन की दिशा की बात नहीं करतीं। यही सबसे बड़ी भूल है।
उन्होंने श्रद्धालुओं को समझाया कि जो व्यक्ति अपने मन को वश में कर लेता है, वह किसी भी संकट से पार पा लेता है। मन जितना नियंत्रित रहेगा, जीवन उतना ही सफल होगा। उन्होंने यह बताया कि बड़ा मन ही ईश्वर को प्राप्त कर सकता है।
कृष्ण बाल लीला में छिपा है ब्रजवासियों का प्रेम और गिरिराज की महिमा
श्री श्रीकांत जी शर्मा ने जब कृष्ण बाल लीला और गिरिराज पूजन की कथा सुनाई, तब पूरा पंडाल मंत्रमुग्ध हो गया। उन्होंने बताया कि जब देवराज इंद्र ने ब्रजवासियों को सताने का प्रयास किया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिराज पर्वत को उठाकर सबकी रक्षा की।
इस प्रसंग से उन्होंने यह संदेश दिया कि भगवान उन्हीं की सहायता करते हैं जो सामूहिक भावना से काम करते हैं। उन्होंने कहा कि गिरिराज पूजन केवल परंपरा नहीं, वह ब्रज की आस्था का केंद्र है।
कभी भी पद, अधिकार और औधे का गर्व नहीं करना चाहिए
कथा में आगे श्री श्रीकांत जी शर्मा ने अहंकार के विनाश का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि देवराज इंद्र के मन में जो घमंड था, उसे भगवान श्रीकृष्ण ने समाप्त कर दिया। उन्होंने बताया कि व्यक्ति को कभी भी अपनी स्थिति, धन या ज्ञान पर गर्व नहीं करना चाहिए।
जीवन में जो भी मिला है, वह ईश्वर की कृपा से मिला है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि जो व्यक्ति नम्र रहता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है और वही समाज में सम्मान प्राप्त करता है।
भक्ति के बिना नहीं बदलता जीवन का स्वरूप
श्री श्रीकांत जी शर्मा की कथा में बार-बार यह बात दोहराई गई कि भक्ति ही जीवन को पूर्ण बनाती है। उन्होंने बताया कि संसार के सभी कार्य सीमित हैं, पर भगवान का नाम असीम है। जो उसका जाप करता है, वह कभी अकेला नहीं होता।
उन्होंने कहा कि संसार में जो भी कुछ स्थायी है, वह केवल ईश्वर की शरण में ही संभव है। उनके प्रवचनों में आध्यात्मिक ऊर्जा और सामाजिक चेतना दोनों ही समाहित थीं।
-अमित मणि त्रिपाठी