देवरिया डेस्क, जिले के मेडिकल कॉलेज परिसर में टीबी एवं क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम को प्रभावी बनाने के उद्देश्य से कोर कमेटी की विशेष बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में क्षय रोग की बढ़ती चुनौतियों और उसके समाधान पर गंभीर चर्चा की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य राजेश बरनवाल द्वारा की गई, जहां कई विभागाध्यक्ष, वरिष्ठ चिकित्सक और स्वास्थ्य अधिकारी उपस्थित रहे। बैठक में ओपीडी में आने वाले मरीजों की स्क्रीनिंग, रेफरल केस बढ़ाने और उपचार व्यवस्था सुदृढ़ करने के बिंदुओं पर विशेष जोर दिया गया।
ओपीडी में लक्षण आधारित जांच का निर्देश
बैठक में राजेश बरनवाल द्वारा निर्देशित किया गया कि ओपीडी में पहुंचने वाले प्रत्येक मरीज की क्षय रोग की आशंका पर लक्षणों के आधार पर जांच अवश्य कराई जाए। उन्होंने बताया कि ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या प्रतिदिन अधिक होती है, ऐसे में यदि लक्षणों के आधार पर संदिग्ध रोगियों की पहचान कर समय रहते जांच की जाए तो संक्रमण की रोकथाम में मदद मिलेगी।
इसके साथ ही प्राचार्य ने मेडिकल कॉलेज के फैकल्टी और चिकित्सकों को क्षय रोगियों को गोद लेने के लिए भी प्रेरित किया। उनके अनुसार, यह कदम सामाजिक सहभागिता को बढ़ावा देगा और मरीजों के समुचित देखभाल की जिम्मेदारी सुनिश्चित होगी। उन्होंने कहा कि समाज के प्रत्येक वर्ग का इस अभियान में सहयोग अत्यंत आवश्यक है।
रेफरल केस की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता
बैठक में जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. राजेश कुमार ने मार्च माह से अब तक का क्षय रोगियों का डाटा प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि मेडिकल कॉलेज से जुड़ी क्षय रोगियों की संख्या में वृद्धि देखी गई है, लेकिन रेफरल केस का प्रतिशत अपेक्षा के अनुरूप नहीं है।
उन्होंने कहा कि टीबी उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी है कि लक्षण वाले मरीजों को प्राथमिक स्तर पर ही रेफर किया जाए, जिससे उनकी समय पर जांच और उपचार हो सके। इसके लिए कॉलेज के चिकित्सकों को रेफरल की संख्या में इजाफा करने के निर्देश दिए गए।
ट्रूनेट मशीन से जांच की अनिवार्यता पर सहमति
बैठक में डॉ. अनुराग शुक्ला, विभागाध्यक्ष टीबी एवं स्वांस रोग विभाग, ने कहा कि मेडिकल कॉलेज में स्थित नोडल डीआर-टीबी सेंटर में मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। उन्होंने बताया कि टीबी मरीजों की बेहतर जांच व्यवस्था के लिए ट्रूनेट मशीन का अधिकतम उपयोग जरूरी है।
ट्रूनेट जांच से टीबी की पुष्टि कुछ ही घंटों में हो जाती है, जिससे मरीजों को शीघ्र उपचार उपलब्ध कराया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सभी विभागों को ट्रूनेट मशीन से जांच सुनिश्चित कराने के लिए प्रेरित किया जाएगा, जिससे शीघ्र निदान संभव हो सके।
टीबी उन्मूलन में विभागों की सामूहिक जिम्मेदारी
डॉ. राजेश कुमार ने बैठक में बताया कि मेडिकल कॉलेज और स्वास्थ्य विभाग को मिलकर इस अभियान को सफल बनाना होगा। उनका कहना था कि क्षय रोग की पहचान और इलाज में देरी मरीज और समाज दोनों के लिए नुकसानदायक है।
क्षय उन्मूलन की दिशा में सामूहिक प्रयासों पर जोर देते हुए कहा गया कि विभागीय समन्वय के साथ ही जागरूकता बढ़ाकर और समय पर जांच कर रोगियों को चिह्नित किया जाए। इससे संक्रमण की कड़ी को तोड़ने में मदद मिलेगी।
विशेषज्ञों ने साझा किए सुझाव
बैठक में डॉ. एच.के. मिश्रा, डॉ. सेराजुद्दीन अंसारी, डॉ. अतुलेश पांडेय, डॉ. अजय यादव, डॉ. प्रदीप गुप्ता, डॉ. राकेश कुमार, डॉ. प्रांशु पांडेय, डॉ. प्रकृति शुक्ला और अन्य वरिष्ठ चिकित्सकों ने भी अपने सुझाव दिए।
सभी ने एकमत होकर कहा कि मरीजों की सुविधाओं को बेहतर बनाया जाए और इलाज के साथ उनकी काउंसलिंग पर भी जोर दिया जाए। डॉ. बबिता कपूर ने क्षय रोग उन्मूलन अभियान में स्टाफ की भागीदारी बढ़ाने और मरीजों को मानसिक सहयोग देने पर बल दिया।
मरीजों को गोद लेने की पहल
बैठक में क्षय रोगियों को चिकित्सकों द्वारा गोद लेने की योजना पर भी चर्चा हुई। राजेश बरनवाल ने कहा कि इससे न केवल मरीजों को नियमित परामर्श मिलेगा, बल्कि उनकी दवा, पोषण और मनोबल का भी ख्याल रखा जा सकेगा।
डॉ. बबिता कपूर ने इस पहल का समर्थन करते हुए कहा कि इससे समाज में जागरूकता बढ़ेगी और मरीजों को भी आत्मीयता का अनुभव होगा। उनके अनुसार, यह कदम क्षय रोगियों के उपचार में एक नया मोड़ साबित हो सकता है।
-अमित मणि त्रिपाठी