Sultan Garhi: भारत का पहला इस्लामी मकबरा, सुल्तानगढ़ी की कहानी

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दिल्ली के ऐतिहासिक स्मारकों की जब भी बात होती है, तो सबसे पहले कुतुब मीनार का नाम सामने आता है। लेकिन कुतुब मीनार से महज 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक ऐसा स्मारक भी है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। यह भारत का पहला इस्लामी मकबरा है — सुल्तान गढ़ी। आम लोग इसे “पीर बाबा की दरगाह” के रूप में जानते हैं, लेकिन इस ऐतिहासिक स्थल का असली इतिहास इससे कहीं ज्यादा गहरा है।

यह मकबरा दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश के बेटे नसीरुद्दीन मोहम्मद का है। इस मकबरे का निर्माण 1231 ईस्वी में हुआ था। दिलचस्प बात यह है कि अगर नसीरुद्दीन की अकाल मृत्यु नहीं हुई होती, तो शायद रजिया सुल्तान कभी दिल्ली की पहली महिला सुल्तान न बनतीं। आइए जानते हैं इस मकबरे और उससे जुड़ी कहानी के बारे में।

गुलाम वंश और इल्तुतमिश का दौर

दिल्ली के इतिहास में गुलाम वंश का बड़ा योगदान रहा है। इस वंश की शुरुआत कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी, जो मोहम्मद गोरी का दास था। मोहम्मद गोरी ने 1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हराकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। बाद में, 1206 में मोहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली की गद्दी संभाली और गुलाम वंश की नींव रखी।

कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद उसके पुत्र आराम शाह ने सत्ता संभाली, लेकिन वह एक कमजोर शासक साबित हुआ। इसी बीच, कुतुबुद्दीन के गुलाम और सेनापति शमसुद्दीन इल्तुतमिश ने सत्ता हथिया ली। इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत को मजबूत किया और राजधानी को लाहौर से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया।

कौन था नसीरुद्दीन मोहम्मद?

नसीरुद्दीन मोहम्मद, इल्तुतमिश का सबसे बड़ा पुत्र था। इल्तुतमिश ने उसे अपना उत्तराधिकारी बनाने की योजना बनाई थी। नसीरुद्दीन को बंगाल और अवध जैसे महत्वपूर्ण प्रांतों का शासक बनाया गया था। वह एक कुशल प्रशासक और बहादुर योद्धा माना जाता था।

लेकिन 1229 में, जब नसीरुद्दीन बंगाल में था, तब उसकी रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। कुछ लोग कहते हैं कि उसकी हत्या कर दी गई थी, जबकि कुछ का मानना है कि वह किसी बीमारी का शिकार हो गया।

सुल्तान गढ़ी मकबरे का निर्माण

नसीरुद्दीन मोहम्मद की मृत्यु के बाद, इल्तुतमिश ने अपने बेटे की याद में 1231 ईस्वी में “सुल्तान गढ़ी” का निर्माण करवाया। यह मकबरा दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के महरौली इलाके के पास स्थित है। यह भारत का पहला इस्लामी मकबरा माना जाता है और इसकी वास्तुकला में इस्लामी और भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

मकबरे का निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है, जो इसे एक सुनहरी चमक देता है। मकबरे के चारों ओर ऊंची दीवारें हैं और चारों कोनों पर बुर्ज बनाए गए हैं। मकबरे के अंदर एक भूमिगत कक्ष है, जहां नसीरुद्दीन की कब्र है। यह कब्र एक अष्टकोणीय गुंबद के नीचे स्थित है। इस कक्ष में तीन कब्रें हैं, लेकिन इनमें से नसीरुद्दीन की कब्र कौन-सी है, यह आज तक स्पष्ट नहीं है।

वास्तुकला और विशेषताएं

प्रवेश द्वार: मकबरे के प्रवेश द्वार पर एक शिलालेख है, जिसमें मकबरे के निर्माण की तारीख और इल्तुतमिश का नाम अंकित है।

गुंबद: यह मकबरा अपने अष्टकोणीय भूमिगत कक्ष और ऊंचे गुंबदों के लिए जाना जाता है। इसके चारों कोनों पर उथले गुंबद बने हुए हैं, जिन पर मजबूत बुर्ज बनाए गए हैं।

अंदरूनी कक्ष: मकबरे के अंदर अंधेरा और शांत वातावरण है। यहां संगमरमर और बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। कमरे की पश्चिमी दीवार में एक किबला (मक्का की दिशा) है, जिसमें कुरान के शिलालेख खुदे हुए हैं।

तहखाना: मकबरे का सबसे रहस्यमयी हिस्सा इसका भूमिगत तहखाना है, जहां तीन कब्रें हैं। इनमें से एक कब्र नसीरुद्दीन मोहम्मद की मानी जाती है, जबकि बाकी दो कब्रों के बारे में जानकारी नहीं है।

दरगाह कैसे बनी सुल्तान गढ़ी?

वर्तमान समय में सुल्तान गढ़ी को “पीर बाबा की दरगाह” के रूप में जाना जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां किसी महान संत या पीर बाबा की कब्र है, और इस स्थान पर श्रद्धालु मन्नत मांगने आते हैं। आसपास के गांवों जैसे सुल्तानपुर, रंगपुरी, महिपालपुर और मसूदपुर से हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग यहां आते हैं।

इस मकबरे में लोग शादी की मन्नत मांगते हैं, नया घर बनने के बाद धन्यवाद देने आते हैं और कई लोग अपनी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए यहां प्रार्थना करते हैं। हालांकि, ऐतिहासिक दृष्टि से, यह स्थान किसी “पीर बाबा की दरगाह” नहीं है।

क्या होता अगर नसीरुद्दीन की मृत्यु न होती?

नसीरुद्दीन की मृत्यु ने दिल्ली सल्तनत के इतिहास को बदल कर रख दिया। अगर वह जीवित रहता, तो शायद रजिया सुल्तान कभी गद्दी पर न बैठतीं। इल्तुतमिश ने नसीरुद्दीन की मौत के बाद अपनी बेटी रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

रजिया सुल्तान ने 1236 से 1240 तक दिल्ली पर शासन किया और वह दिल्ली की पहली और एकमात्र महिला सुल्तान बनीं। अगर नसीरुद्दीन की मृत्यु नहीं होती, तो रजिया के लिए सुल्तान बनना लगभग असंभव था।

सुल्तान गढ़ी का महत्व और वर्तमान स्थिति

सुल्तान गढ़ी न केवल भारत का पहला मकबरा है, बल्कि यह इस्लामी वास्तुकला के शुरुआती विकास को दर्शाने वाला एक महत्वपूर्ण स्मारक है। हालांकि, इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में ज्यादा प्रचारित नहीं किया गया है। कई लोग इसे एक दरगाह के रूप में जानते हैं और यहां पर आकर प्रार्थना करते हैं।

वर्तमान में, इस मकबरे की देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा की जाती है, लेकिन इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं किया गया है। जबकि कुतुब मीनार पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है, सुल्तान गढ़ी का इतिहास और महत्व गुमनाम रह जाता है।

दिल्ली का सुल्तान गढ़ी मकबरा भारतीय इस्लामी इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्मारक है, जो एक शहजादे की बदकिस्मती और उसकी याद में बने भारत के पहले मकबरे की कहानी कहता है। नसीरुद्दीन मोहम्मद की मृत्यु न केवल दिल्ली के इतिहास को बदलने वाला क्षण था, बल्कि इस घटना के कारण रजिया सुल्तान को सत्ता में आने का मौका मिला।

आज भी सुल्तान गढ़ी अपनी भव्यता और इतिहास के लिए खड़ा है। भले ही लोग इसे “पीर बाबा की दरगाह” कहकर जानते हों, लेकिन इसकी असली पहचान एक ऐतिहासिक मकबरे के रूप में है। भारत के ऐसे कई अनसुने स्मारक हमारी पहचान और इतिहास की गाथा कहते हैं, जिन्हें हमें संरक्षित और प्रचारित करना चाहिए।