तक्षशिला विश्वविद्यालय (Takshashila University) का नाम आते ही प्राचीन भारत की विद्या परंपरा की याद आ जाती है। यह दुनिया के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक था, जो भारत की शैक्षिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। इस विश्वविद्यालय ने कई महान विद्वानों को जन्म दिया, जिनमें चाणक्य, पाणिनी और सुश्रुत प्रमुख हैं। तक्षशिला को केवल एक शैक्षिक केंद्र के रूप में ही नहीं, बल्कि व्यापार, संस्कृति और धर्म के संगम के रूप में भी देखा जाता है।
प्राचीन भारत के प्रमुख शिक्षा केंद्र तक्षशिला की स्थापना राजा भरत ने की थी और अपने पुत्र ‘तक्ष’ को प्रशासक बनाने की वजह से इसका नाम तक्षशिला पड़ा। इसे इंसानी सभ्यता की सबसे पहली पाठशाला के रुप में भी जाना जाता है, जो 700 बीसी यानी ईसा के जन्म से 700 साल पहले बनाई गई थी।
यह प्राचीन विश्वविद्यालय 1000 साल तक एशिया के ज्ञान का प्रमुख केंद्र रहा और यहां दुनिया के कोने-कोने से विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने आते थे। तक्षशिला, जो अब पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले के करीब स्थित है, भारतीय इतिहास और शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।
तक्षशिला का उद्भव और नामकरण
तक्षशिला का नामकरण एक पौराणिक कथा से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि राजा तक्ष ने इस नगर को बसाया था और उन्हीं के नाम पर इसका नाम “तक्षशिला” पड़ा। हालांकि, ऐतिहासिक दृष्टि से इसके सटीक संस्थापक के बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
तक्षशिला का उल्लेख कई धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रंथों में मिलता है, जैसे कि रामायण, महाभारत, और बौद्ध जातक कथाएं। महाभारत में इसका उल्लेख एक महत्वपूर्ण शिक्षण केंद्र के रूप में किया गया है। माना जाता है कि यह शहर छठी से सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित हुआ था और इस दौरान यहां पर वैदिक ज्ञान के साथ-साथ बौद्ध शिक्षा का भी प्रचार हुआ।
तक्षशिला का भौगोलिक महत्व
तक्षशिला का भौगोलिक स्थान इसे एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाता था। यह शहर सिंधु नदी के पास स्थित था और तीन प्रमुख व्यापारिक मार्गों का संगम बिंदु था। ये मार्ग थे:
उत्तरापथ (ग्रैंड ट्रंक रोड) – जो गांधार (आधुनिक अफगानिस्तान) से मगध (आधुनिक बिहार) को जोड़ता था।
उत्तर-पश्चिमी गलियारा – जो गांधार से अफगानिस्तान की ओर जाता था।
सिंधु नदी का मार्ग – जो उत्तर में श्रीनगर और दक्षिण में हिंद महासागर तक फैला था।
इस स्थान ने तक्षशिला को एक ट्रेडिंग हब और संस्कृति का संगम बना दिया। व्यापारियों और छात्रों का यहां आना-जाना लगा रहता था, जिससे शिक्षा और संस्कृति का प्रसार हुआ।
तक्षशिला विश्वविद्यालय की विशेषताएं
1. शैक्षिक ढांचा – तक्षशिला विश्वविद्यालय की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि यहां एक औपचारिक कैंपस या लाइब्रेरी जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। यहां के शिक्षक (गुरु) और विद्यार्थी (शिष्य) सीधे संवाद और अनुभव-आधारित शिक्षा के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करते थे।
शिक्षा प्रणाली: तक्षशिला में औपचारिक डिग्री का कोई प्रावधान नहीं था। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना और उसे जीवन में लागू करना था।
आवासीय विश्वविद्यालय: यह विश्वविद्यालय एक आवासीय शिक्षा केंद्र था, जहां गुरु और शिष्य एक साथ रहते और अध्ययन करते थे।
फ्री एजुकेशन: यहां पर गरीब छात्रों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था थी। इसके लिए व्यापारियों और धनी व्यक्तियों से धनराशि जुटाई जाती थी।
2. प्रवेश प्रक्रिया – तक्षशिला में प्रवेश के लिए कोई विशेष परीक्षा नहीं होती थी, लेकिन छात्रों के लिए कुछ बुनियादी शर्तें होती थीं।
प्रारंभिक शिक्षा: छात्रों को पहले अपने घर और आश्रमों में प्रारंभिक शिक्षा लेनी पड़ती थी।
आयु सीमा: 16 वर्ष की आयु के बाद विद्यार्थी को तक्षशिला में प्रवेश मिलता था।
चयन प्रक्रिया: विद्यार्थी को चुनने का अधिकार शिक्षक के पास था। शिक्षकों के पास यह अधिकार होता था कि वे किसे पढ़ाएंगे और किसे नहीं।
3. पाठ्यक्रम और विषय – तक्षशिला में शिक्षा का दायरा काफी विस्तृत था। यहां केवल धर्म और दर्शन ही नहीं, बल्कि विज्ञान, गणित, चिकित्सा, ज्योतिष और सैन्य शिक्षा जैसे विषय भी पढ़ाए जाते थे।
चिकित्सा विज्ञान: चिकित्सा के क्षेत्र में सुश्रुत का नाम प्रसिद्ध है, जिन्हें दुनिया का पहला प्लास्टिक सर्जन माना जाता है। उन्होंने चरक संहिता की रचना की थी।
गणित और व्याकरण: व्याकरण के क्षेत्र में पाणिनी का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने अष्टाध्यायी नामक व्याकरण ग्रंथ की रचना की थी।
अर्थशास्त्र और राजनीति: चाणक्य (कौटिल्य) ने इसी विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और बाद में उन्होंने अर्थशास्त्र की रचना की।
धर्म और दर्शन: यहां वैदिक धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के सिद्धांतों की पढ़ाई कराई जाती थी।
4. शिक्षकों और प्रसिद्ध छात्रों की सूची – तक्षशिला विश्वविद्यालय ने दुनिया को कई महान विद्वान दिए। इन विद्वानों की रचनाएं और योगदान आज भी अमूल्य हैं।
चाणक्य (कौटिल्य)- अर्थशास्त्र (राजनीति और अर्थनीति),
पाणिनी– अष्टाध्यायी (संस्कृत व्याकरण),
सुश्रुत– चरक संहिता (चिकित्सा और प्लास्टिक सर्जरी),
चंद्रगुप्त मौर्य– मौर्य साम्राज्य की स्थापना
तक्षशिला का पतन
लगभग पांचवीं शताब्दी ईस्वी में, हूणों के आक्रमण के कारण तक्षशिला का पतन हो गया। हूणों के नेता तोरमाण ने इस नगर और इसके विश्वविद्यालय को बर्बाद कर दिया। इसके बाद यह शिक्षण केंद्र फिर कभी पुनर्जीवित नहीं हो सका।
तक्षशिला विश्वविद्यालय केवल एक शैक्षिक संस्थान नहीं था, बल्कि ज्ञान, धर्म और संस्कृति का केंद्र था। चाणक्य, पाणिनी और सुश्रुत जैसे महान विद्वानों का यहां पढ़ना इसकी प्रासंगिकता को दर्शाता है। तक्षशिला का योगदान केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की शिक्षा व्यवस्था पर पड़ा।
आज के समय में जब हम हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसे विश्वविद्यालयों की चर्चा करते हैं, तो हमें यह भी याद रखना चाहिए कि प्राचीन भारत में भी ऐसा एक विश्वविद्यालय था, जिसे लोग दुनिया के हर कोने से मान्यता और सम्मान देते थे। तक्षशिला का इतिहास हमें यह सिखाता है कि शिक्षा केवल डिग्री नहीं, बल्कि ज्ञान का प्रचार और प्रसार है।